डा० दिलीप कुमार झा पत्रकार झारखंड , आज देश में प्रेस और उनकी भूमिका पर उठते सवाल के मद्दे नजर अव...
डा० दिलीप कुमार झा पत्रकार झारखंड , आज देश में प्रेस और उनकी भूमिका पर उठते सवाल के मद्दे नजर अवलोकन कर जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ उनकी मदद के साथ एक सशक्त प्लेटफार्म तैयार करने की आवश्यकता है ।मीडिया की भूमिका और उन पर उठते सवाल पर सकारात्मक भाव से सोच कर अमल में लाने की जरूरत हैं । अब सरकार के अपने मीडिया तंत्र पुलिस प्रशासन के अपने मीडिया तंत्र राजनेताओं के अपने प्रेस और टीवी चैनल आज उनके प्रभाव में हैं प्रेस के मालिक और संपादक आर्थिक आभाव और अपनी गलत नीतियों के कारण आम जनता की नजरों में अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं । लोक तंत्र का ये चतुर्थ होलोजोनिक स्तंभ पर निःस्वर्थ भाव से देखने की जरूरत है । आर्थिक स्थिति के आभाव के साथ समाचार व्यवस्था में अगर सबसे दयनीय अवस्था है तो वो निचले लेवल के प्रखंड अनुमंडल और जिला संवाद दाताओं का है । जिनकी न नौकरी की गारंटी है न उनका महत्व न तनख्वाह । ।लेकिन विज्ञापन का भार उनके ऊपर ही होता है । दुर्घटना ,हत्या,सामाजिक बुराइयों के ऊपर बड़े बड़े आलेख पढ़ने मिल जाएंगे जिनसे आम जनता से संबंधित समस्याओं पर कोई प्रकाश नही डाला जाता है ,और न उनके निदान के लिए कोई सुझाव दिखाई पड़ते हैं ।कुछ बड़े बड़े मगरमच्छ भी कुंडली जमा कर बैठे हुए मिल जाएंगे जिनकी न कोई नीतियां हैं न जमीन से जुड़ी समस्याओं का कोई समाधान है उसमे ।सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के पुलिंदे को सिर्फ उतार दिया जाता है जो किसी को स्वीकार्य नहीं होती।कर्मचारियों द्वारा पेपर पहले तैयार हो जाते हैं सर जमीन पर सर्वेक्षण बाद में होता है या नहीं भी होता है ।आंकड़े टेबल पर बैठ कर सत्य से परे पेश कर दी जाती हैं ।ऐसे में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता की उम्मीद करना और उन आंकड़ों और तथ्य पर विश्वास करना भी आश्चर्य जनक होता है । और यही वो वजह है कि आम जनता की नजरों में दैनिक समाचार पत्रों की उपयोगिता खत्म होती जा रही है । धरातल पर जाकर योजनाओं की जानकारी गुणवत्ता और सत्यता के साथ रिपोर्टिंग करना ये होती है रिपोर्टिंग ।पत्रकारों ,संवाद दाताओं के कोई अधिकार नहीं पदाधिकारियों ,नेताओं ,कर्मचारियों से आप कोई सवाल या जानकारी ले नही सकते ।कोई बाध्यता नहीं जानकारी देने की ।जवाब देने के बदले आपको ऑफिस से निकाला जा सकता है। आपके कैमरा और मोबाइल छीनकर फेंकी जा सकती है। दीन हीन निर्धन,जिम्मेदारी से मुक्त संवाददाता चुप चाप अपमानित होकर निकलने के लिए मजबूर हो जाते हैं ।उन्हे कोई तनख्वाह नही मिलती कोई दुविधा या कोई अधिकार प्राप्त नहीं होते ।उनकी अपनी व्यक्तिगत पहचान ही उनकी सुरक्षा की गारंटी होती है ।कुछ बड़े बड़े प्रेस वाले अपने एक आध वैसे आदमी को तनख्वाह देती हैं जो बदले में उन्हें लाखों करोड़ों के विज्ञापन देते हैं बड़े बड़े प्रतिष्ठान और कम्पनियां उनके हाथ गरम कर अपने पक्ष में विज्ञापन और आलेख निकालते हैं ।यही वो वजह है सारकार्वकी एक बड़ी राशि विज्ञापन में चली जाती है और अखबारों और होल्डिंग्स और टीवी चैनल के जरिए कुछ लोगों से कमरे के सामने बयान दिलवाए जाते हैं जो किसी योजना और राज्य प्रमुख और राज्य के सरकार के सफलता की ढिंढोरा पीटती नजर दिखाई देती हैं । इन्हे अधिकार देना होगा जिम्मेदारी तय करनी होगी ।इनके पारिश्रमिक तय किए जाने चाहिए ।सरकारी आदेशों की कट पेस्ट की नीतियों से बचनी चाहिए ।सवाल पूछनेवका अधिकार और योजनाओं की जानकारी के साथ जिले के सर्वोच्च पद पर बैठे महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए पदाधिकारियों के साथ प्रेस वार्ता नियमित रूप से प्रतिमाह होनी चाहिए । जिला सूचना एवम जनसंपर्क अधिकारी की आवश्यकता प्रेस मीडिया को अधिक होती है जबकि वो अपना समाचार या आवश्यक चीजों की जानकारी और सूचना देने की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।
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