डा 0 दिलीप कुमार झा पत्रकार झारखण्ड दिनांक 6/6/2024 गोड्डा —आज भारतीय परम्पराओं और मान्यताओं के आधार पर हर हिन्दू सुहागिन महिला...
डा 0 दिलीप कुमार झा पत्रकार झारखण्ड
दिनांक 6/6/2024
गोड्डा —आज भारतीय परम्पराओं और मान्यताओं के आधार पर हर हिन्दू सुहागिन महिलाये अपने सुहाग की रक्षा के लिए वट सावित्री पर्व को नियम निष्ठां से रखकर ईश्वर से कामना करती है।
पति की लंबी आयु की दुआ करने के साथ-साथ वह उसकी तरक्की के लिए कई उपवास भी रखती है। ऐसे में वट सावित्री व्रत का महत्व अधिक बढ़ जाता है। ये उपवास हर सुहागिन महिला के लिए खास होता है। वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिनें पूरे विधि-विधान से पूजा करती है। इस दौरान कुछ महिलाएं निर्जला उपवास भी रखती है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा का खास महत्व है।
माना जाता है कि इस वृक्ष की पूजा के बिना व्रत पूरा नहीं होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास होता है। इसलिए व्रत रखने वाली महिलाओं को तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह उपवास ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। इस वर्ष भी वट सावित्री व्रत 6 जून, गुरुवार के दिन रखा जा रहा है। इसे वट पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पति सत्यवान और पत्नी सावित्री की कथा
वट सावित्री व्रत कथा परम्पराओं और पौराणिक मान्यताओं के आधार पर
है कि वट सावित्री व्रत करने से पति की आयु लंबी होती है, और परिवार में भी सुख-समृद्धि बनी रहती है। यही नहीं अखंड सौभाग्यवती भव का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा प्रचलित है। ऐसा माना जाता है कि मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था और उनकी कोई भी संतान नहीं थी। राजा ने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया, जिसके शुभ परिणाम के बाद उनके घर एक कन्या का जन्म हुआ। इस कन्या का नाम सावित्री रखा गया।
समय के साथ-साथ जब सावित्री बड़ी और विवाह योग्य हुई, तो उन्होंने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पति रूप में वरण किया। बता दें सत्यवान के पिता भी राजा ही थे। लेकिन उनका राजपाट छिन गया था, जिसके चलते वह दरिद्रता में जीवन व्यतीत कर रहे थे। सत्यवान के माता-पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी और वह जंगल से लकड़ी काटकर उसे बेचकर अपना गुजारा कर रहे थे। वहीं जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली तब नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष पश्चात ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। नारद मुनि की बात सुनकर सावित्री के पिता ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास लेकिन वह नहीं मानी। अंत में सावित्री का सत्यवान से विवाह हो गया।
पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए वट सावित्री व्रत पर करें
शादी के बाद सावित्री अपने सास-ससुर और पति की सेवा में लग गई। फिर एक दिन वो दिन भी आ गया जिसका जिक्र नारद मुनि ने किया था। सत्यवान की मृत्यु ! उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को गई। वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा कि उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी, कुछ वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ ही समय में उनके समक्ष अनेक दूतों के साथ स्वयं यमराज खड़े हुए थे। यमराज सत्यवान की आत्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, 'हे पतिव्रता नारी! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया अब तुम लौट जाओ'।
इस पर सावित्री ने कहा, 'जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। यही सनातन सत्य है'। यमराज सावित्री की वाणी सुनकर प्रसन्न हुए और उनसे तीन वर मांगने को कहा। यमराज की बात का उत्तर देते हुए सावित्री ने कहा, 'मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें' यमराज ने 'तथास्तु' कहकर उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे। किंतु सावित्री यम के पीछे ही चलती रही । यमराज ने प्रसन्न होकर पुन: वर मांगने को कहा। सावित्री ने वर मांगा, 'मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए।इसके बाद सावित्री ने यमदेव से वर मांगा, 'मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं।
कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें' सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो सावित्री से तथास्तु कहा, जिसके बाद सावित्री ने कहा कि मेरे पति के प्राण तो आप लेकर जा रहे हैं तो आपके पुत्र प्राप्ति का वरदान कैसे पूरा होगा। तब यमदेव ने अंतिम वरदान को देते हुए सत्यवान की जीवात्मा को पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री पुनः उसी वट वृक्ष के लौटी तो उन्होंने पाया कि वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हो रहा है। कुछ देर में सत्यवान उठकर बैठ गया। उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखें भी ठीक हो गईं और उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया। इन्ही मान्यताओं के आधार पर आज भी ये सुहागिनों का व्रत धूम धाम नियम और निष्ठां के साथ मनाया जाता है।
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