जीते हैं शान से मरते हैं शान से, (धारावाहिक तीसरी कडी ) रोमांचक बहस, चीन और भारत युद्ध वर्ष 1962 स्थान —पाठक बंगला कमलपुर। डा 0...
जीते हैं शान से मरते हैं शान से,
(धारावाहिक तीसरी कडी ) रोमांचक बहस, चीन और भारत युद्ध वर्ष 1962
स्थान —पाठक बंगला कमलपुर।
डा 0 दिलीप कुमार झा पत्रकार झारखण्ड.।
दिनांक —9/6/2024
समय सुबह 7 बजे पाठक बँगला पर बैठकी प्रारम्भ हो चुकी थी और उन दिनों टीवी का युग नहीं ट्रांजिस्टर और रेडियो का युग था। लड़कों की शादी में दहेज़ जो भी होता था एक हजार दो हजार,1500,500 लेकिन तीन चीज महत्वपूर्ण थी घड़ी, साईकिल, रेडिओ ये तीनो वस्तु लड़के की डिमांड भी कह सकते हैं लेकिन प्रायः सभी लड़कों की और उनके अभिभावक की अलग से डिमांड होती थी। जिनके यहाँ रेडियो थी वो घर में समाचार सुनकर पाठक बंगला पर अपनी जानकारी सार्वजनिक करते और कुछ नए विवाहित लड़के अपनी ट्रांजिस्टर को बजाते हुए गुजरते तो लोग उसे स्थान देकर समाचार सुनने की कोशिश कर उसके बाद विश्लेषण कर अपनी सलाह या जानकारी देने में पीछे नहीं रहते।
बात भारत चीन के युद्ध के समय का था मेरी बहुत छोटी उम्र थी लेकिन जिज्ञासा और युद्ध की स्थिति जानने की ख्वाहिश होती थी। एक अनजान भय सबके दिलो दिमाग़ पर छाया रहता था जब बीबीसी न्यूज़ अपनी समाचार प्रवक्ता मार्क टली की गंभीर आवाज़ में प्रसारित करता था, ये बीबीसी लंदन है अब आप मार्क टली से विश्व समाचार सुनिए। सबके कान खडे हो जाते थे और कोई एक आवाज़ उस दरम्यान निकाल नहीं सकता और पिन ड्राप साइलेंट छा जाता था।तब भारत चीन युद्ध समाचार की खबरें प्रसारित होने लगती थी भारत चीन युद्ध में भारतीय सैनिकों ने बहादुरी से मुकाबला करते हुए पचास सैनिक शहीद हुए और सैकड़ों चीनी सैनिक मारे गए लेकिन नाथूला दर्रे के पास इस संघर्ष में हिंदुस्तान की चार चौकीयां अपने कब्जे में कर ली। अपनी चौकियों की रक्षा में भारतीय सैनिको ने जान की बाजी लगा दी लेकिन चार चौँकि गँवा दी। समाचार ख़त्म हुए की घोषणा के साथ ही अब चर्चा और बहस प्रारम्भ हो गई। श्याम सुन्दर काका ने बड़े ही भय के साथ पुछा— हो ई चीनी सैनिक आखिर खाली चौकि ही क्यों लूटता है। क्या जाने साला हमलोग का भी चौकि बचेगा की नहीं? मेरे घर में तो एके चौकि है ले लेगा तो मुश्किलें होगा?
तब तक राजो भाय बोले हमरो की लेतो ना चौकि है ना खटिया आप लोग चिंता कीजिये हम तो इस चिंता से मुक्त हैं.। मैं भी एक छोटा बच्चा था बहुत बड़ी चिंता हो गई कि ये चीनी सैनिक सिर्फ चौकि लूटता है मेरे दरवाजे पर तो छह चौकि बिछी है और हो सकता है कब चीनी सैनिक आप धमके और उठा कर कहे ऐ उठो और सब चौकी खाली करो हम सब चौकी उठा ले जा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में हमलोग अपनी सारी चौकि दे देंगे। मेरे दादा ज़ी तो दरवाजे पर ही सोते थे और ठीक उनके बगल में मेरी चौकी रहती थी। मैंने अपनी शंका दादा ज़ी को बताई कि हो सकता है अब एक दो दिन में ही चीनी सैनिक हमारा भी चौकी छीन ले आज ही पाठक बंगला पर समाचार सुना है कि हिंदुस्तान कि एक एक चौकी पर चीन कब्ज़ा कर रहा है। भय और आशंकाओं के बीच नींद भी नहीं आ रही थी कि कब सुबह हो और रेडिओ में सुने कि चीनी सैनिक भागलपुर तक तो नहीं पहुँच गया? अख़बार भी गांव में आने का कोई साधन नहीं था। कोई दामाद, कुटुंब या नौकरी पेशा ग्रामीण जब गांव आता तो अख़बार तीन चार दिन पुरानी हो जाती थी लेकिन उसका महत्त्व कभी कम नहीं होता फिर भी लोग एकाग्र होकर हर एक एक विज्ञापन तक पढ़ लेते थे।लेकिन ट्रांजिस्टर तो एकदम लेटेस्ट न्यूज़ देती थी. ये रेडियो विविध भारती है अब आप समाचार सुने, पहले प्रादेशिक फिर विविध भारती और बीबीसी ये तीनो समाचार सुने बिना किसी भी निष्कर्ष पर नही पहुंचा जा सकता था। एक रेडियो (झंकार )घर में होता था जिसपर माता ज़ी के आदेश पर खोलना या बंद करना साथ ही कौन सा कार्यक्रम चलेगा उनका विशेषधिकार था। एक पिता ज़ी का ट्रांजिस्टर था फिलिप्स कम्पनी कि जिसे वो अपने कान के बगल में ही रखते। हमलोग ताक झाँक कर कुछ सुनने कि कोशिश करते लेकिन पढ़ाई का भार भी था इसलिए चुपचाप कभी सुन लेने का मौका मिल जाता।
दुसरे दिन फिर सुबह पाठक बंगला भरा पड़ा था और गुलजार था। सभी बुजुर्ग कांथी पर पैर लटका कर पहले बैठ जाते थे उनके पीछे उनसे छोटे उम्र वाले और कुछ अवयस्क और युवा बँगले के सामने खाली जगह सडक पर कोई जगह पकड़ लेते थे और अपनी अपनी जगह से ही अपनी तेज आवाज़ से किसी भी बहस में हिस्सा लेते थे। शशि कांत काका का भी अपना एक अलग अंदाज होता था ज्यादा नहीं लेकिन एक दो पॉइंट अपना रख देते थे। राधा काका का घर बग़ल में था बैकुंठ काका, नवीन भाई, अयोध्या बाबा, रावो बाबा, झबरी बाबा, ये सब स्थाई सदस्य थे और रसूखदार लोग थे और ये रसूख पैसे या धन पर आधारित नहीं होता था उनकी बुजुर्गयत और ऊँचे सम्बन्ध पर निर्भर होता था। क्रमशः अगली कड़ी में —
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